hindisamay head


अ+ अ-

कविता

रंग सप्तक

प्रेमशंकर शुक्ल


सूर्योदय का रंग छूता हूँ
गीली हो जाती है
पूरी हथेली

छाप-छाप कर
भरता हूँ उम्र का कैनवास
इसी तरह मेरे जीवन में
चित्र बचे रहते हैं।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ